5-Day Residential Workshop : 25 – 29 February, 2016
Kandbaari, Palampur, Himachal Pradesh
The India Institute for Critical Action: Center in Movement (CACIM) in collaboration with Sambhaavnaa Institute is organising a five day long residential workshop on “land rights and politics” at the Sambhaavnaa Institute of Public Policy and Politics in Kandbari, Himachal Pradesh from 25 February to 29 February 2016.
The workshop will explore the current debate and political contestation around land and development in the wake of promulgation (and subsequent withdrawal) of land ordinance and farmers – workers struggles that followed; illusion of Public – Private – Partnerships; framing of corporate friendly rules and policies by State governments; on-going agrarian crisis and farmers suicides and long forgotten agenda of land reforms.
The programme is intended to serve as an induction for those interested in exploring various facets of land rights through archival or field-based research, organizations, practices or engagements in any other forms.
The school over five days will comprise of a series of lectures, conversations and experiences shared by prominent scholars, activists and practitioners in the field. The course is open to young students, researchers, workers, activists and those interested in the discourse. The number of participants is limited to a maximum of 25 persons.
Tentative Programme:
01 The Policy Paradox:
Right to Fair Compensation, Transparency in Resettlement and Rehabilitation Act (RFCTLARR) 2013 was a historic victory for people’s movements in securing the lost rights of PAPs (Project Affected People) in the country. Soon after coming to power, the NDA government’s first push was to remove major categories of projects from the ambit of the RFCTLARR. New machinations like ‘Land – Pooling’ has already replaced the RFCTLARR in the case of greenfield Smart cities like Dholera in Gujarat and Amravati in Andhra Pradesh. States have now been given free hand to devise their own rules. When every law is skewed to favour urbanization and industrialization, what will happen to agriculture and food security of the country?
02 A History of the Landless:
India’s struggle for independence finds origin in people’s demand for equitable distribution of land. Abolition of Zamindari system and subsequent land reforms failed in achieving the adequate, giving rise to the Naxalbari. Despite uprisings and popular protests, what keeps the landless of the country in a limbo? Why do they end up facing the brunt of development? Can the Forest Rights Act ensure community rights over land? How can reclamation of land and other resources of primary production processes be ensured in a world where even the definition of the landless in official lingo has been changing over a period of time?
03 Women and Ownership:
India’s patriarchal framework has always kept women secluded from legal claims to land. How have progressive ideas seeped into this repressive framework? How do modern day women agriculturists reclaim what is lost? At a time when mass migrations from rural to urban areas have left women in charge of agriculture, why do they still remain invisible?
Other topics for discussion and engagement are –
- How is the struggle for Land Rights crucial in shaping India’s political-economic future?
- Land use pattern, food security and Common Property Resources
- Land grab: An international perspective & reclamation in the context of agrarian reform
- Urbanisation, rentier economy and the business of real estate
- Political economy of agrarian reforms, land-labour relations and industrial development
*(Resource Persons to be announced soon)
Expected Participants:
The course is open to young students, workers, activists or those interested in examining the various issues and threats associated with unjust land acquisition and land rights. However, a basic understanding of the issues at stake such as the propaganda of the RFCTLARRA, 2013 would be appreciated. The number of participants is limited to a maximum of 25 persons.
Interested individuals must apply by 15 February, 2016. Please fill in the online application form given below or follow this link!
Language:
The programme will be conducted in English and Hindi
Programme Fee:
The fee is a total of Rs. 3700/- for five days including food and accommodation. For those who are not earning and require financial assistance, please mention this on your cover letter. We will be able to provide some need based assistance towards either the programme fee or travel.
Directions to the venue visit : https://www.sambhaavnaa.org/contact-us/
For any Query or any other info:
Logistics : Parul Sood, Sambhaavnaa Institute at
Phone: +91-8894227954, Email: programs@sambhaavnaa.org
Content and program info: Rishit, CACIM at
Email: cacim@cacim.net
ज़मीन : इसका मालिक कौन ? – कब्ज़े और मिलकियत का सवाल
5 दिन की आवासीय कार्यशाला
कंडबाड़ी, पालमपुर, हिमाचल प्रदेश
‘इंडियन इंस्टिट्यूट फॉर क्रिटिकल एक्शन “ सेंटर इन मूवमेंट’ और ‘सम्भावना संस्थान’ मिल कर ‘भूमि अधिकार और राजनीति’ विषय पर पांच दिन के आवासीय कार्यशाला का आयोजन कर रहे है ! कार्यशाला, का आयोजन संभावना इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पालिसी एंड पालिटिक्स, गाँव-कंडबाड़ी, पालमपुर हिमाचल प्रदेश में दिनांक 25 फरवरी से 29 फरवरी 2016 को किया जा रहा है !
यह कार्यशाला, भू-अधिग्रहण अधिसूचना जारी करना और उसे वापिस लेना, इसके बाद का मजदूरों और किसानों का संघर्ष, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप का भ्रम, राज्य सरकारों द्वारा कारपोरेट के हित की नीतियां और नियम बनाना, भयावह होता हुआ किसानी और किसानों की आत्महत्या का संकट, लंबे समय से भुला दिया गया भूमि सुधार पर आज के समय में चलने वाली चर्चा और राजनैतिक इच्छा शक्ति की पड़ताल करेगी !
इस कार्यशाला का लक्ष्य भू-अधिकार के विभिन्न पक्षों को समझने में रुची रखने वाले लोगों को तथ्यात्मक और मैदानी शोध और संगठनों द्वारा और अन्य तरीकों से परिचय करवाने का होगा !
पांच दिन की इस कार्यशाला में मैदानी काम करने वाले कार्यकर्ता, अपना वक्तव्य, चर्चा और अनुभव साझा करेंगे! यह कार्यशाला युवा कार्यकर्ताओं, शोधार्थियों मैदानी काम करने वाले साथियों के लिए खुली है! प्रतिभागियों की अधिकतम संख्या 25 रहेगी !
अनुमानित कार्यक्रम :
01 नीति का अंतर्विरोध :
समुचित मुआवजे और पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन में पारदर्शिता कानून 2013 (RFCTLARR) जन आंदोलनों और परियोजना प्रभावित लोगों द्वारा प्राप्त करी गयी ऐतिहासिक जीत थी ! लेकिन एनडीए द्वारा सत्ता में आते ही बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाओं को इस कानून के दायरे से बाहर करने का काम किया गया !नए तरीकों की खोज करी गयी जैसे लैंड पूलिंग द्वारा स्मार्ट सिटी और ग्रीनफील्ड परियोजनाओं को इस कानून की परिधी से बाहर कर दिया गया है , उदहारण के लिए गुजरात के धौलेरा और आन्ध्र के अमरावती में राज्य सरकार को अपने हिसाब से नियम बनाने की खुली छूट मिल गयी है ! जब हरेक कानून को उद्योग और शहरीकरण के लिए तोडा मरोड़ा जा रहा है तो फिर देश की खेती और खाद्यान्न सुरक्षा का क्या होगा ?
02 भूमिहीनता का इतिहास:
भारत के स्वतंत्रता संघर्ष की एक मांग ज़मीन की समतापूर्ण बंटवारे की भी थी. ज़मींदारी उन्मूलन और ज़मीनों का बंटवारा इस मांग को समुचित ढंग से पूरा नहीं कर पाया और उसके कारण नक्सलवादी आन्दोलन का जन्म हुआ! इस मुद्दे पर अनेकों जन आंदोलनों और जनता के संगठित होने के बावजूद इस मुद्दे पर आज भी अनिश्चितता की हालत है! आज भी वे क्यों विकास का अभिशाप झेलने के लिए मजबूर किये जाते हैं ? क्या वन अधिकार कानून समुदाय का ज़मीन पर अधिकार सुनिश्चित कर सकता है ? और जबकि आधिकारिक भाषा के तौर पर भूमिहीन होने की परिभाषा ही बदल रही हो वहाँ उत्पादन के प्राथमिक संसाधनों पर जनता का कब्जा कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है ?
03 महिलाएं और मिलकियत :
भारत की पितृ सत्तात्मक संरचना में महिलाओं को ज़मीन के अधिकार से अलग ही रखा गया है. इस प्रतिगामी ढांचे में प्रगतिशील विचार कैसे आ पाए ? आज की महिलायें खोये हुए अधिकारों को कैसे दोबारा हासिल कर रही हैं ? आज जब कि बड़े पैमाने पर गाँव से शहर की तरफ पलायन हो रहा है और खेती की जिम्मेदारी महिलाओं पर आ गयी है वे फिर भी अदृश्य क्यों बनी हुई हैं ?
चर्चा और शमिल होने के अन्य मुद्दे –
- क्या भूमि अधिकार आन्दोलन भारत के आर्थिक – राजनैतिक भविष्य को दिशा देने में महत्वपूर्ण होगा ?
- ज़मीन के इस्तेमाल का ढंग, खाद्यान्न सुरक्षा और सामुदायिक संसाधन
- ज़मीन हडपना : अंतर्राष्ट्रीय समझ और अधिकार को फिर से अपने हाथ में लेना , खेती सुधार के सन्दर्भ में
- शहरीकरण : किरायेदारी की अर्थव्यवस्था और ज़मीन और मकानों का व्यापार
- कृषि सुधार और आर्थिक राजनीति , भूमि और मज़दूर का संबंध और औद्योगिक विकाससंभावित प्रतिभागी :यह कार्यक्रम , छात्रों, कार्यकर्ताओं, एक्टिविस्ट्स, और इस मुद्दे के विभिन्न पक्षों और खतरे को समझने में रुची रखने वाले साथियों के लिए खुला है ! हांलाकि इस मुद्दे पर बुनियादी समझ जैसे कि RFCTLARRA, 2013 की समझ को महत्व दिया जायेगा ! प्रतिभागियों की संख्या अधिकतम 25 रखी जायेगी !भाग लेने में रुची रखने वाले साथी 15 फरवरी 2016 तक अवश्य आवेदन कर दें ! नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर के आन-लाइन आवेदन फ़ार्म भर कर भेज दीजिए ! https://www.sambhaavnaa.org/event/land-rights-workshop/भाषा :कार्यक्रम की भाषा अंग्रेज़ी और हिन्दी होगीकार्यक्रम का शुल्कपांच दिन के कार्यक्रम में भोजन और आवास का शुल्क 3700/- होगा .वे साथी जो अभी काम नहीं कर रहे हैं और आर्थिक सहायता को इच्छुक हैं , वे कृपया अपने आवेदन में इस बात का उल्लेख अवश्य कर दें ! हम आवश्यकता के आधार पर किराये अथवा कार्यक्रम के शुल्क हेतु आर्थिक मदद दे सकेंगे !
पहुँचने के लिए मार्गदर्शन : https://www.sambhaavnaa.org/contact-us/
वेब साईट पर कार्यक्रम का लिंक : https://www.sambhaavnaa.org/event/land-rights-workshop/
फेसबुक पर कार्यक्रम का लिंक : https://www.facebook.com/events/423550987855621/
अन्य जानकारी अथवा पूछताछ के लिए :
आवास आदि , पारुल सूद , संभावना संस्थान ,
फोन : +91-8894227954, ई मेल : programs@sambhaavnaa.org
विषयवस्तु और कार्यक्रम की जानकारी के लिए : रिषित , CACIM.
ई मेल : cacim@cacim.net