Home > Events > jokering justice – an introduction to theatre of the oppressed
14 April, 2023
9:00 am



Please scroll down for the english version

वंचितों का रंगमंच : एक परिचय

14-19 April, 2023

(Please note that the date has been modified)

पृष्ठभूमि

पिछले कुछ सालों ने मानव जीवन में तेजी से होने वाले बदलावों को देखा है| विभिन्न राजनैतिक और सामाजिक क्षेत्रों द्वारा यह समझने की कोशिश जारी है कि इनका असर उस चीज़ पर कितना पड़ा है जिसे हम समुदाय अथवा समाज  कहते हैं| समुदाय किन किन चीज़ों से मिल कर बनता है और यह इन बदलावों के साथ खुद को कैसे ढालता है| समाज को जोड़ने वाले इस सामाजिक गोंद को समझने की कोशिश अक्सर हमारे सामने सांस्कृतिक काम के रास्ते खोलती है|

क्या संस्कृति महज़ कला और स्थापत्य है या इससे ज्यादा भी कुछ है| यह जिंदगियों पर कैसे असर डालती है? क्या इसका अस्तित्व सिर्फ अतीत में था, जिसे एक दूर रह कर ही देखा जा सकता है? हमारे चारों तरफ जो कुछ है वह इस विडम्बना से घिरा हुआ है, देशज और लोकभिव्य्क्तियाँ जैसे आदिवासियों की चित्र शैली वारली का पूंजीवादकरण किया जा रहा है ताकि उसे एक उत्पाद अथवा वस्तु में बदला जा सके उदाहरण के लिए लैपटॉप या हमारे पिट्ठू बैग| क्या यह संस्कृति है? सारा देश करवा चौथ मनाने में व्यस्त हो जाता है जबकि उसी समय लोगों को सडकों पर साम्प्रदायिक आधार पर मार डाला जाता है, कोविड से होने वाली मौतों को दिया जलाने और थाली बजाने या ढोल बजाने के उत्सवों से ढका जाता है| क्या संस्कृति के नाम पर इसे नया समान्य हाल बनाया जा रहा है?  

रंगमंच हमेशा से संस्कृति का दूसरा नाम रहा है – महज़ अभिव्यक्ति की एक विधा के तौर पर नहीं, बल्कि अपने दोहरे गुण के साथ समाज के सामने एक आइना और एक खिड़की दोनों दिखाते हुए| अन्य किसी भी दुसरे सफर की तरह संस्कृति भी बिना किसी ढांचागत बंदिशों के आगे बढ़ती है और विकसित होती  है| इसका अस्तित्व एक सीधी लकीर नहीं होता बल्कि यह मनचाहे अनगढ़ तरीके से विकसित होता है| 

वंचितों का रंगमंच और बातचीत की संस्कृति

वंचितों का रंगमंच(TOTO) समानता और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के राजनीतिक विचारों पर आधारित एक अभ्यास है। दुनिया भर में, विभिन्न आंदोलनों, समुदायों और संगठनों ने इसका उपयोग सामाजिक-सांस्कृतिक बदलाव शुरू करने के लिए किया है।
वास्तविक, महत्वपूर्ण और समावेशी संवाद, वर्तमान में और भविष्य में भी स्थायी लोकतंत्र के महत्वपूर्ण पहलू हैं। TOTO, एक दृष्टिकोण और एक तकनीक दोनों के रूप में, व्यक्तियों और सामूहिकों के व्यवहार और धारणा में बदलाव की सुविधा प्रदान करता है, विविध संवादों को मान्य और समर्थन करने के लिए अधिक स्वामित्व और व्यावहारिक दृष्टिकोण को सक्षम बनाता है। उत्पीड़ित प्रथा का रंगमंच लोगों के बौद्धिक संकाय का गहरा सम्मान करता है और इसलिए उत्पीड़न को चित्रित करने और कहानी को बदलने की क्षमता रखता है। थिएटर का यह रूप न केवल अभिनय पर बल्कि एक्शन पर भी केंद्रित है। यह वास्तविकताओं के प्रतिबिंब पर विचार-विमर्श करता है और भविष्य की कार्रवाई के लिए पूर्वाभ्यास हो सकता है।

हम तीन मॉड्यूल के साथ एक गहन TOTO कार्यक्रम का आयोजन कर रहे हैं, जिसे एक फ़नल के रूप में डिज़ाइन किया गया है – हर स्तर पर बाहर निकलने के साथ 10 महीनों में फैला हुआ है, लेकिन केवल फ्रेशर्स के लिए नींव स्तर पर और अनुभव वाले लोगों के लिए मध्यस्थ में प्रवेश संभव है। इसमें प्रतिभागियों के नेतृत्व में ऑन-साइट वर्कशॉप और एक्शन प्रोजेक्ट दोनों शामिल हैं।

उद्देश्य

  • तीन कार्यशालाओं को कुछ महीनों के अंतराल के भीतर रखा जाएगा और 2022 तक फैलाया जाएगा।
  • तीन स्तर होंगे: नींव> मध्यस्थ> तीव्र।
  • स्रोत व्यक्ति (जया अय्यर और जुबैर इदरीसी), संभावना संस्थान के साथ, अपने संबंधित क्षेत्रों में TOTO विधियों और प्रथाओं में संलग्न होने की योजना बनाने वाले व्यक्तियों के लिए एक स्थान और समुदाय बनाना चाहते हैं। यह अन्य स्थानों के बीच सामाजिक विकास और शिक्षा का कोई भी क्षेत्र हो सकता है। विचार परिवर्तन के एजेंट बनाने का है जो भविष्य में न्याय, समानता और परिवर्तन से संबंधित मुद्दों के लिए TOTO व्यवसायी बनेंगे।
  • कार्यशालाओं के लिए सूचना का स्तर, अभ्यास के तरीके और तीव्रता इस क्रम में कार्यशाला के हर स्तर के साथ बढ़ेंगे: फाउंडेशन> इंटरमीडियरी> इंटेंस।
  • फाउंडेशन स्तर के पूरा होने पर, प्रतिभागियों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने-अपने पेशेवर स्थानों में किसी न किसी तरह से TOTO के साथ जुड़ें। मध्यस्थ स्तर के लिए आवेदन करने में सक्षम होने के लिए यह अनिवार्य होगा। विचार एक समय रेखा तैयार करना है, जहां प्रशिक्षण और ऑन-फील्ड अभ्यास एक साथ चलते हैं।

यह कार्यशाला, जो प्रथम और परिचयात्मक स्तर की है,6 दिवसीय कार्यशाला है। यह इस अनाकार ढांचे का परिचय है और विभिन्न क्षेत्रों में TOTO को लागू करने के संभावित तरीके हैं। यह कार्यशाला भागीदारी प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करेगी जो लोगों को मुद्दों की पहचान करने, उन्हें लघु नाटकों के रूप में व्यक्त करने और एक संरचना बनाने की संभावना प्रदान करती है जिसमें कहानी को बदलने और बदलने के लिए अभिनेताओं और दर्शकों के बीच एक सक्रिय संवाद को उकसाया जाता है। इन 6 दिनों के दौरान हम जो कार्य करेंगे, वह अनुभवात्मक होगा, जिसमें शामिल तकनीकों का सारांश और संक्षिप्त विवरण होगा:

  • आन्तरिकता से जोड़ने का स्थान – हमारे शरीर और मन के बीच, और मनुष्यों और उनके आसपास की दुनिया की हर चीज के बीच जुड़ाव को समझना।
  • व्यक्तिगत साझाकरण और सुनने के सत्रों के माध्यम से उत्पीड़न की परस्परता का विश्लेषण करें और अपने भीतर और हमारे सामूहिक जीवन के पदानुक्रम, हिंसा और अन्याय का सामना करें।
  • स्क्रिप्ट फोरम और सुविधा – मजाक करने और विभिन्न क्षेत्रों में इनका उपयोग करने के सिद्धांत (उदाहरण के लिए बड़े विषम समूहों की सुविधा)।
  • उत्पीड़ितों की शक्ति में विश्वास विकसित करना और उसका उपयोग करने के साधन और उपकरण खोजना।
  • सतत परिवर्तन के लिए संवाद की एक प्रभावी संस्कृति का निर्माण करें|

दूसरा दौर 2-3 महीने के अंतराल के बाद वर्ष में बाद में होगा। हम ज्यादातर वही प्रतिभागियों को रखना चाहेंगे जिन्होंने कार्यशालाओं के पहले दौर में भाग लिया था। इस कार्यशाला में TOTO में एक उन्नत प्रशिक्षण शामिल होगा और इसमें जमीन पर समुदायों के साथ काम भी शामिल होगा। तीसरे दौर में, संभावना परिसर में एक प्रशिक्षण घटक और समुदायों के साथ काम करने का एक लंबा घटक होगा। जब हम पहले दौर के दौरान मिलेंगे तो हम इन कार्यशालाओं की विशिष्टताओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे। विवरण को सामूहिक रूप से अंतिम रूप दिया जाएगा।

इन कार्यशालाओं के अलावा, और उनके माध्यम से, हम शैक्षिक क्षेत्रों में शिक्षकों के साथ काम करने और छात्रों और स्कूली समुदाय के साथ बड़े पैमाने पर जुड़ने की भी योजना बना रहे हैं। इसका उद्देश्य स्कूली शिक्षा प्रणालियों और इन प्रणालियों में सत्ता, पदानुक्रम और राजनीति के संबंधों पर एक आलोचनात्मक नज़र डालना है। हम इस विचार से निर्देशित होते हैं कि कक्षाएँ भी एक रंगमंच हैं और इन प्रदर्शनों का सांस्कृतिक प्रभाव गहरा होता है

यह कार्यशाला किनके लिए है

यह कार्यशाला परिवर्तनकारी, सामाजिक कार्यो में लगे हुए लोगों, कार्यकर्ताओं, सामाजिक आंदोलनों में शामिल लोगों, रंगमंच कार्यकर्ता जो सामाजिक बदलाव के आयाम पर काम करते हैं, तथा उन युवा रंगमंच कलाकारों के लिए है जो सामाजिक बदलाव की तकनीकों की तलाश में हैं|

यह कार्यशाला उनके लिए आदर्श कार्यक्रम है जो नाटक को सामाजिक बदलाव के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं|

कार्यशाला समन्वयकों का परिचय

जया अय्यर

जया अय्यर सामाजिक विकास के विभिन्न आयामों से जुडी प्रक्रियाओं पर गत तीस सालों से सक्रीय हैं| वे विभिन्न सम्मानित फेलोशिप प्राप्त कर चुकी हैं, वे वंचितों के रंगमंच के अध्ययन के लिए औग्स्टो बोल के साथ यूनेस्को के एशबर्ग बर्सरे फेलोशिप भी प्राप्त कर चुकी हैं| एक रंगमंच कार्यकर्ता के रूप में वे 20 से अधिक प्रस्तुती निर्माण और एक हज़ार से ज्यादा स्टूडियो, नुक्कड़ नाटकों और सामुदायिक रंगमंच का आयोजन कर चुकी हैं|  

उनके द्वारा निर्मित प्रस्तुती को साहित्य कला परिषद् के प्रतिष्ठित ‘वर्ष के सर्वश्रेष्ठ नाटक’ का पुरस्कार मिल चुके हैं| उनके नाटक एडिनबर्ग के फ्रिंज फेस्टिवल में शामिल किये जा चुके हैं, उर्दू नाटक उत्सव में, श्री राम ग्रीष्मकालीन महोत्सव में तथा सत्य के लिए रंगमंच महोत्सव में शामिल किये जा चुके हैं| वे भारत और दुनिया में एक नाट्य प्रशिक्षक के रूप में  यात्राएं करती रहती हैं|

जया प्रवाह की मुख्य कार्यकारी रही हैं तथा ‘नेहरु स्मृति पुस्तकालय तथा संग्रहालय’ की ‘राष्ट्रीय बाल एवं युवा केंद्र’ की स्थापना की प्रक्रिया का हिस्सा रही हैं| वे बैचेलर ऑफ़ एलीमेंट्री एजुकेशन, टाई, नेशनल म्युज़ियम इंस्टीट्युट तथा दिसोम स्कूल ऑफ़ लीडरशिप में अतिथि व्याख्याता रह चुकी हैं| जया अनेकों अभियानों की रूपरेखा बनाने तथा उनके नतृत्व से जुडी रहीं जिनमें कृषि बीज में आत्मनिर्भरता, बाल अधिकार, लिंग आधारित हिंसा, प्लास्टिक विरोधी अभियान तथा शांति निर्माण के अभियान मुख्य हैं|

जुबैर इदरीसी

जुबैर पंद्रह सालों से नाटकों के माध्यम से सक्रीय हैं| उनकी रूचि का क्षेत्र नाटक की बदलावकारी ताकत तथा समाज परिवर्तन की प्रक्रिया पर उसके प्रभाव हैं| जुबैर की विशेषज्ञता रंगमंच आधारित प्रशिक्षण की है जो व्यक्ति के स्तर पर संगठन के स्तर पर और समुदाय के स्तर पर हो सकते हैं| उन्हें परियोजना निर्माण, संयोजन जिसमें युवा तथा लैंगिक न्याय को केंद्र में रखते हुए कार्यक्रमों को देश के विभिन्न इलाकों में चलाने का लम्बा अनुभव है| उन्होंने अलग अलग मुद्दों और उद्देश्य को लेकर अनेकों सामाजिक अभियानों की रूपरेखा तैयार तैयार की तथा उनका क्रियान्वयन किया है| प्रदान संस्था में उन्होंने 2017 से 2019 के बीच लैंगिक हिंसा, जन वितरण प्रणाली में भ्रष्टाचार तथा मतदान के अधिकार के मुद्दे पर काम किया|

जुबैर ने अनेकों सरकारी, गैर सरकारी तथा निजी संगठनों में काम किया है जिसमें शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के साथ शैक्षणिक संस्थानों में काम शामिल हैं| इनमें यूनिसेफ, ग्रीनपीस, जागोरी, संगत, पीसीआइ, तीन मूर्ती भवन, नेहरु युवा एवं बाल अध्यन केंद्र भारत सरकार नई दिल्ली शामिल है| इसके अलावा वे अनेकों गैर सरकारी संगठनों जैसे मिटटीका, केपीएमजी गुडगाँव, मोनेट फाउन्डेशन छत्तीसगढ़, गूगल, बोश, इम्पल्स मीडिया दिल्ली व अन्य के साथ भी काम कर चुके हैं| जुबैर युवाओं के साथ अनेकों सत्र भारत के सामाजिक विकास के विभिन्न आयामों पर कर चुके हैं| रंगमंच उनकी गतिविधियों और अभिव्यक्ति का माध्यम रहा है| इस तरह का सांस्कृतिक प्रतिरोध कितना महत्वपूर्ण है, आज के मुद्दे क्या हैं और उनका निदान किस तरह के अभियानों और कार्यवाहियों से किया जा सकता है|

तारीख और स्थान : 14 से 19 अप्रैल 2023, संभावना संस्थान, ग्राम व पोस्ट – कंडबाड़ी, तहसील – पालमपुर, ज़िला- काँगड़ा, पिन कोड  176061 हिमाचल प्रदेश है

प्रतिभागियों के लिए योगदान : छह दिन की इस कार्यशाला के लिए प्रत्येक प्रतिभागी के लिए योगदान राशी 6000/- रूपये होगी| हम एक संगठन से दो अथवा अधिक प्रतिभागियों को आवेदन करने के लिए प्रेरित करेंगे| प्रतिभागियों को अपना मार्ग व्यय स्वयं देना होगा|

कैसे पहुंचे: कृपया देखें: यहां पहुंचें

किसी अन्य जानकारी के लिए: व्हाट्सएप या कॉल करें: 889 422 7954 (सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे के बीच), और ई-मेल: programs@sambhaavnaa.org

धनराशी को अपने आवेदन ना करने का कारण ना बनने दें| आवश्यकता पर आंशिक फीस माफी की सुविधा उपलब्ध है| हमारे पास एक सीमित संख्या में छात्रवृत्ति उपलब्ध हैं, यदि आपको वास्तव में उसकी आवश्यकता है| याद रखिये ऐसे लोग भी मौजूद हैं जिन्हें इसकी आवश्यकता आपसे अधिक है| फीस माफी की सुविधा का आमंत्रण हाशिये के समाजों गैर अनुदान प्राप्त संगठनों सामाजिक राजनैतिक आंदोलनों और छात्र संगठनों के लिए है|


jokering justice – an introduction to theatre of the oppressed

Background

The last few years have seen rapid transitions in every aspect of human lives. Various contemporary socio-political arenas have been trying to understand the effects this has had on what we mean by community. What constitutes a community and how has it adapted to these changes? Attempts at trying to grasp the nature of this social glue often leads us to the gateway of cultural work.  

Is Culture just Art and Architecture or is there more to it? How does it affect lives? Does it only exist in the past, to be observed from a distance? The irony is embedded in everything around us, as indigenous and folk forms of expression, like Warli Art, is being capitalised upon to be put on objects, like laptop covers and backpacks. Does THIS constitute culture? An entire nation gets busy in celebrating Karva Chauth while communal lynching, violence and deaths due to COVID mismanagement are camouflaged with celebrations using lamps, drums and thalis. Or is THIS the new normal for Culture?

Theatre has always been synonymous with culture- not just a form through performance, but something posing with its dual nature as both the mirror and the window.  Just like any other journey, Culture moves and grows without structural frameworks. It is non-linear and chaotic in its extension.

Theatre of the oppressed and the Culture of dialogue

Theatre of the Oppressed (TOTO) is a praxis based on the political views of equality and democratic processes. Across the world, different movements, communities and organisations have used it for initiating sociocultural shifts.
Real, vital and inclusionary dialogues are crucial aspects of enduring democracies, in present and in future too. TOTO, both as an approach and a technique, facilitates a shift in behaviour and perception of individuals and collectives, enabling greater ownership and hands-on approach to validate and support diverse dialogues. The Theatre of the Oppressed practice deeply respects the intellectual faculty of people and therefore has the potential to portray oppression and change the story. This form of theatre focuses not just on acting, but also action. It deliberates on the reflection of realities and can be a rehearsal for future action.

We are organizing an intensive TOTO program with three modules, which is designed as a funnel – spread across 10 months with exit possible at every level but entry possible only at the foundation level for freshers and at intermediary for those with experience. This entails both on-site workshops and action projects led by participants.

 Objectives

  • The three workshops will be placed within an interval of a few months and be spread over through 2023.
  • There will be three levels: Foundation > Intermediary > Intense.
  • The resource persons (Jaya Iyer and Zubair Idrisi), along with Sambhaavnaa Institute, want to create a space and community for individuals planning to engage in TOTO methods and practices in their respective fields. This could be any arena of social development and education among other spaces. The idea is to create Agents of Change who would become TOTO practitioners in the future for issues related to justice, equality and transformation.
  • The level of information, practice methods and intensity for the workshops would step up with every level of the workshop in this sequence: Foundation > Intermediary > Intense.
  • On completion of Foundation level, participants are expected to engage with TOTO in some way, in their respective professional spaces. This will be an imperative, to be able to apply for Intermediary level. The idea is to create a timeline where training and on-field practice run simultaneously.

This workshop, which is the first and introductory level, is a 6-day workshop. It is an introduction to this amorphous framework and possible ways to implement TOTO in various fields. This workshop will focus on participatory process which offers people the possibility of identifying issues, articulating them in form of short plays and creating a structure in which an active dialogue between the actors and the spectators is instigated in order to try and change the story. The work that we will do during these 6 days will be experiential, with a summary and debrief of the techniques involved:

  • Space to connect within – understanding the connectedness between our body and the mind, and between human beings and everything in the world around them.
  • Analyse the intersectionality of oppressions and confront the hierarchies, violence and injustices within ourselves, and our collective lives through personal sharing and listening sessions.
  • Script forum and facilitation – principles of jokering and utilising these in different fields (e.g. facilitating large heterogeneous groups).
  • Develop trust in the power of the oppressed and finding means and tools to harness the same.
  • Build an effective culture of dialogue for sustainable change.

The second round will take place later in the year, after a gap of 2-3 months. We would mostly like to have the same participants who participated in the first round of workshops. This workshop will involve an advanced training in TOTO and also involve work with the communities on the ground. In the third round, there shall be a training component at the Sambhaavnaa campus and a longer component of working with the communities. We shall together discuss the particularities of these workshops in detail when we meet during the first round. Details would be finalized collectively.

In addition to these workshops, and through them, we also plan to work with teachers in educational spaces, and engage with students and schooling community at large. The aim is to have a critical look at the schooling systems and the relationship of power, hierarchy, and politics in these systems. We are guided by the idea that classrooms are also a theatre and the cultural impact of these performances run deep.

 Who is this workshop for?

This workshop is for change-makers, social work practitioners, activists, people associated with people’s movements, theatre artists who work on aspects of social change and young artists exploring to develop techniques for social change.

This workshop is ideal for those who want to begin using Theatre for social change processes.

About the facilitators

Jaya Iyer

Jaya Iyer has been associated with various aspects of social development for over three decades. An awardee of many prestigious fellowships, Jaya is also a recipient of the UNESCO Aschberg Bursary to study the Theatre of the Oppressed with Augusto Boal. As a theatre professional she has developed and staged over 20 major productions and around 1000 Studio,

Street and Community Performances. Her productions have won the prestigious Sahitya Kala Parishad “Best Play of the Year”, has been showcased in Edinburgh Fringe Festival, Urdu theatre festival, Sriramsummer festival, theatre for Truth festival etc. She has travelled extensively with her performances and as a trainer across India and the world.

Jaya was CEO of Pravah and led the process to set up the National Centre for Children and Youth in Nehru Memorial Museum and Library. She has been a guest faculty in Bachelor of Elementary Education, TIE, National Museum Institute and Disom School of Leadership. Jaya has  designed and led various public campaigns around Seeds-sovereignty, Child Rights, Gender-based violence, Anti-plastic movements and Proactive Peacebuilding.

Zubair Idrisi 

Zubair has been a theatre practitioner for more than fifteen years. His area of interest lies in working around the transformative power of Theatre in influencing social change. Zubair specialises in theatre based training and facilitation of workshops at individual, community and organizational level. He has extensive experience in project design and coordination with a focus on youth and gender-oriented programs, in different regions of the country. He has designed and executed various social campaigns as well, each addressing a specific cause or an issue. His work with Pradan between 2017 and 2019 involved campaigns around gender based violence, PDS distribution and the right to vote.

Zubair has worked with multiple non-government, government and private organisations, along with students and teachers belonging to educational institutions as well.  These include UNICEF, Greenpeace, JAGORI, Sangat, PCI, and Teen Murti Bhawan, Nehru Learning Centre for Children and Youth and Government of India headquarters in New Delhi.

Dates and Venue: 14 to 19 April, 2023, Sambhaavnaa Institute, VPO – Kandbari, Tehsil – Palampur, District – Kangra, PIN 176061, Himachal Pradesh.

Participant Contribution

We hope that participants would contribute an amount of Rs. 6000/- towards workshop expenses, inclusive of all on-site workshop costs: boarding, lodging, and all the materials used in the workshop.

Travel of participants will have to be borne by the organisation/the participants.

How to reach: Please visit: Getting here

For any other info:  WhatsApp or call : 889 422 7954 (between 10 am to 5 pm), and e-mail: programs@sambhaavnaa.org

Do not let money be an impediment to your application. Need based fee waivers are available.  We have a limited number of scholarships so please apply for a fee waiver if you really need it. Do remember that there may be others who need it more than you.  Fee waiver will be offered to people from marginalized groups and non-funded social, political or students movements

Please fill the form below to apply:

Open chat
Scan the code
Hello
Can we help you?