पर्दे का पर्दाफाश
प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण
12 से 16 दिसंबर, 2023
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- पृष्ठभूमि
हममें से अधिकांश लोग अपने दिन के कई घंटे किसी न किसी प्रकार के मीडिया से जुड़े रहते हैं। पुराने और नए मीडिया के माध्यम से आज जिस मात्रा में मीडिया सामग्री का उत्पादन और उपभोग किया जा रहा है, वह अभूतपूर्व है। मीडिया का यह विस्तार हमें मानसिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से कैसे प्रभावित कर रहा है – यह प्रश्न हममें से कइयों को चिंतित करता हैं, क्योंकि यह हमारे सामूहिक भविष्य पर गहराई से असर डालता है।
जनसंचार माध्यमों का हमेशा से जनमत को प्रभावित करने, और हमारे मूल्यों और संभावनाओं को आकार देने की उनकी अपार शक्ति के लिए विश्लेषण किया गया है। एक बड़ी चिंता यही है की मीडिया कैसे कुछ संवादों को वैध और सामान्य बनाता है, जो ज़्यादातर वर्चस्वी समूहों के हितों में होते हैं।
आज इंटरनेट और सोशल मीडिया के युग में, मीडिया सामग्री केवल कुछ शक्तिशाली मीडिया मालिकों से बाकी लोगों तक ही प्रवाहित नहीं होती – अब हम सभी के पास एक चैनल की सम्भावना है, जिससे हम अपनी बात प्रसारित कर सकते हैं। मीडिया के इस लोकतंत्रीकरण को अवश्य ही स्वागत करने, और मज़बूत करने की ज़रुरत है। लेकिन यह भी ज़रूरी है की हम उन सत्ता समूहों को अनदेखा न करें, जो इन नए मीडिया प्लेटफॉर्मो के भी मालिक हैं और इन्हें नियंत्रित करते हैं, और किस तरह सच्चे परिवर्तन की संभावनाओं को बौना कर देते हैं हैं।
मीडिया, सत्ता और लोकतंत्र के रिश्ते को समझना हमेशा ही महत्वपूर्ण रहा है। यह वर्तमान भारत में और भी आवश्यक हो चला है – विशेषकर समाचार के संबंध में। समाचार हमेशा से लोकतंत्र का एक स्तंभ माना गया है, क्योंकि यह जांच कर सकता है, सवाल पूछ सकता है, की कोई सरकार समानता, न्याय, पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों पर कैसा और कितना अमल कर रही है? समाचार संस्थान यह भूमिका तभी निभा सकते हैं जब वे कम से कम, राज्य और राजनीतिक नियंत्रण से स्वतंत्र हों। आज भारतीय समाचार मीडिया का एक प्रमुख वर्ग, विशेषकर टेलीविजन, सरकार का एक प्रचार विंग बन कर रह गया है। और स्वतंत्र समाचार संस्थाओं, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं परहमले हो रहे हैं। इसके अलावा, सोशल मीडिया, जो इन जवाबी अभिव्यक्तियों को जगह देता है, उनका गला घोंटा जा रहा है। और उनमे, फर्जी खबरों (fake news) और घृणास्पद भाषणों (hate speech) की बाढ़ आ रखी है। इन सब कारणों से, सीमांत समूहों के प्रति, विशेष रूप से धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति, पूर्वाग्रह, भेदभाव और हिंसा में वृद्धि हुई है, और संविधान में जिस भारत की कल्पना है, वह धूमिल होती दिख रही है ।
आज जो कोई भी हमारे लोकतंत्र की स्थिति और भविष्य के बारे में चिंतित है, उसे हमारे मीडिया की स्थिति के बारे में भी उतना ही चिंतित होने की आवश्यकता है। अतः, यह ज़रूरी है कि हम सभी, परदेकेपीछे छुपी वास्तविकताको देखना सीखें – मीडिया के व्यवसाय को जाने, विमर्शों की जांच करें और उनके सामाजिक, राजनीतिक प्रभावों को समझें। एक न्यायपूर्ण और लोकतांत्रिक मीडिया प्रणाली के लिए आंदोलन की ज़रुरत है, और यह आंदोलन एक बेहतर दुनिया के लिए हो रहे हमारे सभी आंदोलनों का एक अनिवार्य भाग होना चाहिए।
यह काम मीडिया शिक्षा से ही संभव है है। और इस कार्यशाला का उद्देश्य यही शिक्षा प्रदान करना है। कार्यशाला के तीन मुख्य उद्देश्य हैं:
– मीडिया सिस्टम पर पैनी दृष्टि बनाना
– वर्तमान सूचना प्रसारण तंत्र को समझ पाने का कौशल सीखना
– सामाजिक न्याय के लक्ष्यों के लिए मीडिया का उपयोग सीखना
प्रशिक्षकों का एक प्रशिक्षण कार्यशाला का एक उद्देश्य प्रशिक्षक तैयार करना भी है। अतः प्रतिभागी न केवल अपनी समझ विकसित करेंगे, बल्कि यहाँ से जाने के बाद वे कार्यशाला में सीखी गई बातों को अपने सहयोगियों और समुदायों तक फैला सकेंगे। विभिन्न सेटिंग्स में इसी तरह की कार्यशालाएं आयोजित करने में वे सक्षम होंगे। इसके लिए हम उन्हें ऑडियो-विज़ुअल और पठान सामग्री, व अभ्यास और तरीके इत्यादि उपलब्ध कराएंगे।
इस कार्यशाला में कौन आये ?
जो लोग ग्रामीण या शहरी भारत में ज़मीनी स्तर के समूहों के साथ काम करते हैं, और मीडिया पर अपनी समझ बढ़ाना चाहते हैं, और साथ ही स्कूलों, कॉलेजों, सामुदायिक समूहों और संगठनों में मीडिया शिक्षा कार्यशालाएं आयोजित करने में रूचि रखते हैं।
कार्यशाला की विषय – वस्तु
कार्यशाला निम्नलिखित प्रश्नों और विषयों पर रौशनी (रोशनी?) डालने का प्रयास करेगी:
– मीडिया क्या हैं? पुराना और नया मीडिया क्या है? और वे कैसे विकसित हुए हैं?
– मीडिया क्यों मायने रखता है, उसका अध्ययन करना क्यों महत्वपूर्ण है और हम यह अध्ययन कैसे कर सकते हैं?
– मीडिया समाज में शक्ति के विभाजन को कैसे आकार देता है और उससे कैसे प्रभावित होता है ?
– मीडिया का व्यवसाय, पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में इसका स्थान, और मीडिया कंपनियों की संरचना और संचालन।
– मीडिया जो हमें परोसता है, उसके प्रकार, उनका संदर्भ, मीडिया के इरादे और मीडिया में किसका है प्रतिनिधित्व है ।
– समाचार के सन्दर्भ में तथ्य, राय, पूर्वाग्रह, अनुनय, फर्जी ख़बरों (fake-news) और सच्चाई ko samajhna
– आज के भारत में समाचारों की स्थिति और इसका हमारी राजनीति और लोकतंत्र पर प्रभाव।
– सशक्त मीडिया उपभोक्ता, निर्माता और प्रशिक्षक कैसे बने – इसके लिए ज्ञान और कौशल, जिसमें तथ्य-जाँच (fact- check) और प्रभावी सामग्री (content) निर्माण शामिल हैं।
स्त्रोत व्यक्ति :
डॉ. सुप्रिया चोटानी को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से समाजशास्त्री के रूप में प्रशिक्षित किया गया है। वह एक स्वतंत्र अकादमिक हैं. उनके पास जामिया मिलिया इस्लामिया और डॉ. बी.आर. अम्बेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली में दस साल का शोध और शिक्षण अनुभव है। उन्होंने सामाजिक क्षेत्र में काम किया है, ज्यादातर शहरी समानता और लैंगिक न्याय के मुद्दों पर।उनकी रुचि के क्षेत्रों में मीडिया और राजनीति, महिला आंदोलन और pratirodh संस्कृतियाँ शामिल हैं।
प्रतीक सिन्हा – प्रतीक ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक हैं, इन्हे सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में 14 साल का अनुभव रहा है। वह भारत के सूचना पारिस्थितिकी तंत्र में आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देने के लिए पत्रकारिता, इंजीनियरिंग और सक्रियता का मिश्रण करते हुए गलत सूचनाओं, दुष्प्रचारों और घृणास्पद भाषणों की सच्चाई सामने लाते हैं।
अनीश मुखर्जी – AltED के विभाग अध्यक्ष है | इनके पास शिक्षा, संचालन और अनुदान संचय (?) का 13 साल का अनुभव है।
महाप्रज्ना नायक – अंग्रेजी शिक्षण और शैक्षणिक अनुसंधान पृष्ठभूमि के साथ-साथ AltED में पाठ्यक्रम तैयार करने के प्रमुख भी हैं ।
एलिया जमील – AltED में कार्यान्वयन प्रमुख हैं | इन्हे शिक्षा में 7 वर्षों का अनुभव है।
अन्वी बहल – AltED में अनुसंधान एवं विकास के प्रमुख है | इनके पास वैश्विक विकास में बिहार में स्वयं सहायता समूहों के प्रभाव का अध्ययन करने वाले परीक्षण चलाने का अनुभव है।
workshop ki prastaavit rooprekha
दिन 1- सत्र 1: संभावना संस्थान से परिचय एवं ओरिएंटेशन
दिन 1 – सत्र 2: मीडिया – एक परिचय
- प्रतिभागी, प्रतिभागियों का मीडिया से जुड़ाव, उनकी चिंताएं, और कार्यशाला से अपेक्षाओं
- – मीडिया क्या हैं, मीडिया प्रणालियों का अध्ययन करना क्यों महत्वपूर्ण है , मीडिया और सत्ता के संबंध मीडिया का संक्षिप्त इतिहास यह ऐतिहासिक दृष्टिकोण हमें यह देखने में भी सहयोग करेगा कि मीडिया को लेकर हमारी चिंताएं समय के साथ कैसे बढ़ी और बदली हैं।
दिन 2 – सत्र 1: मीडिया का व्यवसाय
- मीडिया स्वामित्व, नियंत्रण और सामग्री के बीच संबंधों की जांच
- आज के मीडिया का पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में स्थान
- हम प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के वित्तीय मॉडल की जांच, एल्गोरिदम (algorithms) par paini nazar
- मीडिया व्यवसाय को नियंत्रित करने की आवश्यकता और संभावनाओं पर कुछ चिंतन दिन 2 – सत्र 2: प्रतिनिधित्व की राजनीति
- मीडिया की विषय-वस्तु (content) की शक्ति को समझाना
- मीडिया की भाषा को समझेंगे, और साथ ही यह की उत्पादक कैसे मीडिया भाषा के द्वारा, अभिप्रेत संदेश या अर्थ का निर्माण करते हैं
- सामूहिक गतिविधियों और अभ्यासों के माध्यम से हम विभिन्न प्रकार की प्रिंट और ऑडियो-विजुअल सामग्री, जैसे पोस्टर, विज्ञापन, मीम्स, फिल्म और समाचार क्लिप आदि को पढ़ना सीखेंगे, विशेष रूप से यह की विभिन्न मीडिया में वर्ग, जाति, नस्ल, जातीयता, लिंग और यौन रुझान आदि सामाजिक श्रेणियों को कैसे दर्शाया जाता है।
दिन 3 – सत्र 1: समाचार के आर–पार देखना
- समाचार की जांच
- तथया राय, पूर्वग्रह, सचाई(facts, opinions, prejudices, truth) ko samajhna – kyonki yah हमें गलत सूचना (fake news) और दुष्प्रचार (misinformation) को परखने में सक्षम बनाता है
- समाचार के चयन और प्रस्तुति की राजनीती को समझाना
- समाचार फ़्रेमिंग और एजेंडा को डिकोड करना
दिन 3 – सत्र 2: भारत में समाचार और लोकतंत्र
- समकालीन भारत में 24/7 टेलीविजन समाचार चैनलों और00सोशल मीडिया की सामग्री, और उनमे विशेष रूप से राजनीतिक विज्ञापन, प्रचार, फर्जी समाचार और घृणास्पद भाषण जैसे मुद्दों, और उनके प्रभावों पर ध्यान देंगे
- पत्रकारों की स्वतंत्रता, स्वतंत्र मीडिया आउटलेट्स और मीडिया में जवाबदेही की वर्तमान स्थिति की समीक्षा, मीडिया में बेहतरी की संभावनाओं का आकलन
दिन 4 – सत्र 1: तथ्यों की जांच करना सीखना
- ऑनलाइन देखी जाने वाली किसी भी प्रकार की जानकारी पर तथ्य-जांच करने के तरीके और कौशल
- हम गूगल लेंस (Google Lens) और यांडेक्स (Yandex) जैसे टूल्स के साथ छवि सत्यापन (image verification), और कीवर्ड सर्च (Keyword search) द्वारा, लिखित, चित्र एवं वीडियो सामग्री की जांच करना भी सीखेंगे।
- इस ज्ञान को दूसरों के साथ kaise साझा करने jaise ki तथ्य-जांचकर्ताओं ki sankhya badhe दिन 4 – सत्र 2: बदलाव के लिए इंटरनेट का उपयोग करना
- सामाजिक कार्यकर्ता आज के मीडिया का मुकाबला कैसे करें औरअपनी आवाज को कैसे बढ़ाएं , इसके लिए इंटरनेट का उपयोग कैसे करें, या सीखेंगे
- अपने ऑनलाइन लेखों, छवियों और वीडियो पर लोगों का ध्यान आकर्षित करने, और उनकी पहुंच को अधिकतम बढ़ाने की प्रभावी रणनीतियों
- बयान और प्रस्तुति के कौशल पर चर्चा दिन 5 – सत्र 1: मीडिया शिक्षा कार्यशाला की योजना बनाना
यह सत्र विभिन्न समूहों के साथ मीडिया शिक्षा पर प्रशिक्षण को डिज़ाइ और संचालित करने के बारे में व्यावहारिक मार्गदर्शन प्रदान करेगा। ऐसे प्रशिक्षणों में विषय क्या हो, किन सामूहिक गतिविधियों का इस्तेमाल किया जाये, किस तरह के की ऑडियो-विजुअल सामग्री, या लेखों का इस्तेमाल प्रभावी होगा – सत्र इस तरह के इनपुट देगा ।
दिन 5 – सत्र 2: प्रतिभागियों से कार्यशाला पर प्रतिक्रिया और प्रतिक्रिया
भाषा: मुख्यत हिंदी
कार्यक्रम की लागत में योगदान: इस कार्यशाला का शुल्क ३००० रूपए है। हमारे पास आवश्यकता-आधारित आंशिक छूट उपलब्ध हैं, कृपया छूट के लिए तभी आवेदन करें जब आपको वास्तव में इसकी आवश्यकता हो। कृपया याद रखें कि अन्य लोग भी हो सकते हैं जिन्हें आपसे अधिक इसकी जरुरत है।
तारीख : 12 से 16 दिसंबर, 2023
संभावना पहुँचने के लिए मार्गदर्शन : https://www.sambhaavnaa.org/contact-us/
स्थान: संभावना संस्थान, पालमपुर, हिमाचल प्रदेशअन्य जानकारी अथवा पूछताछ के लिए – व्हाट्सप्प/कॉल – +91-889 422 7954 (केवल 10 am – 5 pm के बीच कॉल करे); ईमेल – programs@sambhaavnaa.org
Seeing through the media – a workshop on Critical Media Education
A Training of Trainers
Background
Most of us keep a near-constant connectivity to some form of media in our waking hours. Owing to globalization and digitisation, media and tech industries have expanded, and the sheer volume of content being produced and consumed today, through old and new media forms, is unprecedented. A host of questions are thus being asked about how this expansion of media is shaping us – psychologically, socially and politically. These questions concern each one of us, for they deeply bear upon the imagination and reality of our collective future.
Modern mass media have always been analysed for their immense power to influence public opinion, and to shape thus norms, values and choices. One of the longstanding concerns has been how through its tools of representation, mass media legitimise and normalise certain discourses within the public sphere, which mostly, if not always, serve the interests of dominant social groups. With Internet and social media, content does not flow now from only a few powerful media owners to the rest: we can all have a broadcast channel now. This democratisation of media, as we see today, needs to be necessarily celebrated and strengthened, but without losing sight of the power blocs that own and control these new spaces, and scuttle its potentials for real democratic expression and transformation.
It is as important as ever to understand the relationship of media, power and democracy. This is especially urgent in the case of India, particularly in relation to news. News media has always been regarded as a pillar of democracy, for it can investigate and ask questions on how a government is faring on principles such as equality, justice, transparency and accountability. However, news institutions can play that role only if they are, at the very least, independent of State and political control. Today, we see that a dominant section of Indian news media, especially television, is effectively a propaganda wing of the government. Alongside, we see a widespread attack on independent news outlets, journalists and activists, and in fact anyone voicing critical, counter-narratives. Further, social media, which allow for these counter expressions, are being muzzled, as also inundated with fake news and hate speech. All this has led to increasing prejudice, discrimination and violence against marginal groups, particularly religious minorities, and the steady dismantling of the Constitutional idea of India.
Freedom of expression, diversity of opinion and space for deliberation, are among the minimum conditions for the survival of any democracy. And media are an indispensable link to the same. Anyone concerned with the state and future of our democracy today, needs to be equally concerned with the state of our media. The issues at hand are especially pertinent for activists engaged with different social movements for a more inclusive, just society.
It is imperative that we all learn to see the true reality behind the screens – to understand the business of media, to scrutinize discourses, and discern their larger social, political effects. We need to be especially tuned to how media influence voter choices today, as who comes to power, with what values and agendas. It is equally critical to galvanise resistance on and via media. This includes critiquing corporate media systems, which is part of our larger struggle against the neoliberal order, supporting and building initiatives for independent media, and advocating for media freedom and reform. A movement for a just and democratic media system has to be an intrinsic part of all our movements for a better world.
Central to such a praxis is media education. And that is what this workshop aims to impart. It has been designed with three core objectives:
- Build critical perspectives on media systems
- Learn skills to navigate the present information landscape
- Use media for advancing social justice goals
A training of trainers The workshop is intended as training for trainers – so that the participants can spread the learning picked up in the workshop to their colleagues and communities. Thus the participants would not only build their own understanding, they would take back a resources like audio-visual material, exercises and tools, and readings to be able to conduct similar workshops in a variety of settings.
II Who should attend?
Those who work with grassroots groups in rural or urban India, want to enhance their understanding on media, and conduct media education workshops with diverse groups such as schools, colleges, community associations and organisations.
III What the workshop covers?
The workshop engages with the following questions and themes.
- What are media? What are old and new media? And how have they evolved?
- Why do media matter, why is it important to study them and how can we do so?
- How media are shaped by and shape the distribution of power in society?
- The business of media, its place within the capitalist economy, and the structure and operations of media and tech corporations.
- Reading media content in terms of form, context, authoritative source, aesthetics, intent and politics of representation.
- Understanding news, and related concepts of fact, opinion, bias, persuasion, misinformation and truth.
- The state of news in India today and its import on our politics and democracy.
- Knowledge and tools for becoming empowered media consumers, producers and trainers, including skills of fact-checking, and strategies of effective content generation and dissemination.
IV Tentative Session Plan
Day 1 -Session 1: Introduction and Orientation to the Sambhaavnaa Institute
Day 1 – Session 2: Introducing Media
In this opening session, the participants share their engagement with, and concerns on media, as well as expectations from this workshop. As a way of introducing our themes, we reflect on a few questions – what are media, why is it important to study media systems and how do we understand the relationship of media and power? We also briefly trace the evolution of media technologies from print to the Internet, and consider the broad set of changes these catalysed, such as on circulation of ideas and information, on connection and community, and movements and politics. This historical lens also allows us to see how many of our concerns around media have travelled and changed with time.
Day 2 – Session 1: The Business of Media
We take forward our discussion on media and power by examining the relation between media ownership, control, and content, and do so by referring to a few important concepts such as political economy, ideology, and hegemony. We also make a close analysis of the business of media today and its place within the capitalist economy. Here, we first look at the ownership patterns and economics of the mainstream news and entertainment industry, both globally and in India. Then, we probe the financial model of dominant social media platforms, powered as it by algorithms that promote and customize content for users’ attention and profit, albeit at huge social and political costs. The session ends with some reflection on the need and possibilities of regulating media business.
Day 2 – Session 2: Politics of Representation
This session lays focus on the power of media content. We learn to grasp the language of media and how it is employed by producers to create intended messages or meanings. Through group exercises, we engage with a variety of print and audio-visual material, such as posters, ads, memes, film and news clips etc, and learn to read the politics of representation in different media genres, on hierarchies such as gender, class, caste, race, ethnicity and sexual orientation
Day 3 – Session 1: Deconstructing News
Here we examine NEWS and how its form has evolved from print to social media. We start with foundational concepts in journalism, such as fact, opinion, bias and truth. This equips us to discern misinformation and disinformation. We then ask – what is news, if and how it is distinct from other content genres, and how is it changing. We proceed to understand news as a social construction and explore factors that drive its selection and presentation. We also learn to decode news framing and agendas, through examples from print, television and social media.
Day 3 – Session 2: News and Democracy in India
In this session, we make an in-depth analysis of the eco-system of news in contemporary India, and how it is mediating our political and democratic future. We focus on the content of 24/7 television news channels and social media, and particularly attend to concerns and impacts of political advertising, propaganda, fake news, and hate speech, among others. We also review the current state of journalist freedoms, independent media outlets, and existing media accountability mechanisms, and in this light, assess the potential for democratic media reform.
Day 4 – Session 1: Learning to Fact-check
This session equips us with tools to perform basic fact-checks on any kind of information we see online. We gather strategies to gauge if information is likely to be fake and make further investigations. We learned to carry out image verification with tools such as Google Lens and Yandex and also to perform keyword searches efficiently for verifying text, image, and video details. By the end of the session, we all have enough skills and confidence to share this knowledge with others and help build a growing community of fact-checkers.
Day 4 – Session 2: Using the Internet for Change
How do we counter-hegemonic media discourses to amplify our voices as activists within the public sphere? We address this question in this action-driven session. Here, we learn on ways to use the Internet for goals of progressive social change. We explore a range of effective strategies for posting text, images, and videos online in order to gather traction and maximize reach. We also discuss skills of rhetoric and presentation discern which issues to prioritize, and further, how to present them online to optimize response.
Day 5 – Session 1: Planning a Media Education Workshop
This session gives hands-on guidance on how to design and conduct training on media education with different groups, with specific pedagogical inputs, such as themes, group activities, audio-visual materials, reading lists and hand-outs.
Day 5 – Session 2: Feedback from Participants
Resource Persons
Dr Supriya Chotani is trained as a sociologist from Jawaharlal Nehru University. She is an independent academic, with ten years of research and teaching experience in Jamia Millia Islamia and Dr B.R. Ambedkar University, Delhi. Additionally, she has worked in the development sector, mostly on issues of urban equality and gender justice. Her areas of interest include media and politics, women’s movement and protest cultures, among others.
Pratik Sinha – Co-founder of Alt News, has 14 years of experience in software engineering. He tackles misinformation, disinformation, and hate speech, blending journalism, engineering, and activism to foster critical thinking in India’s information ecosystem.
Anish Mukherjee – Vertical Lead at AltED, has 13 years of experience in education, leads operations, and fundraising.
Mahaprajna Nayak – Head of Content and Curriculum at AltED, with a publishing, ESL teaching, and academic research background.
Elia Jameel – Head of Implementation at AltED, has 7 years of experience in education.
Anvi Bahl – Research and Development at AltED, has experience in global development running a randomized controlled trial studying the impact of self-help groups in Bihar.
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